परवरिश पर गहराते सवाल

एक समय था जब ज्यादातर भारतीय माता – पिता अपने बच्चों के लालन -पालन से जुड़ी हर चिंता से तकरीबन मुक्त रहते थे। देश मे जो नया माध्यम वर्ग पिछले दो- ढाई दशकों मे तैयार हुआ है, वह अपने बच्चों के लालन – पालन , शिक्षा और भविष्य संबंधी तैयारियों से लेकर उनके लिए हर किस्म की सुख – सुविधाएं जुटाने के लिए काफी सक्रिय है । बच्चों को वह हर सहूलियत देना चाहता है, जो शायद उसे अपने बचपन मे नहीं मिली, लेकिन इस चाहत ने अभिभावक को न सिर्फ बेतहासा खर्च का दबाव झेलने को मजबूर किया बल्कि ऐसे संकट भी पैदा कर दिए हैं जो जानलेवा भी साबित हो रहे है ।

असल मे, परवरिश की ऐसी दुविधा ने हमारे समाज के सामने वे सारे संकट खड़े कर दिए हैं, जहां नई पीढ़ी बिना कुछ संघर्ष किए सब कुछ पा लेना चाहती है, यही कारण है कि युवाओं मे नशे की लत, शड़क हादसों की बढ़ती संख्या और तमाम तरह के हुड़दंग मे उनके शामिल होने के मामले हर दिन सामने आ रहे हैं । दिखावे की परंपरा ने भी शहरी समज मे काफी कुछ बिगाड़ पैदा किया है । अगर बच्चों को विदेश पढ़ने के लिए नहीं भेज गया, या किसी शादी किसी शानदार बैंगक्विट हाल मे नहीं हुई, होली – दीपावली में धूमधाम नहीं हुई या अन्य किसी मौके पर वे सारे आयोजन नहीं हुए जो होने चाहिए थे तो ये वर्ग मायूस हो जाता है । कई बार तो दिखावा इतना हवी हो जाता है और फिर उसके दबाव मे पूरे परिवार की आत्महत्या जैसे मामले सामने आते हैं

स्रोत : – संपादकीय जनसत्ता , लेखिका मनीषा सिंह

6 thoughts on “परवरिश पर गहराते सवाल”

  1. अब पाश्चात्य सभ्यता हम पर हावी है। इसी को देखकर हम अपनी संतानों की परवरिश करते हैं। उसी का नतीजा है कि हमारे बच्चों को damage pant तक पसंद आती है।

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