Nelson Mandela

महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं मिले, लेकिन अपने पूरे संघर्ष के दौरान मंडेला गांधी के विचारों से प्रेरित लगे। रंग भेद और नस्लवाद के खिलाफ झण्डा बुलंद करने वाले मंडेला अपने पूरे संघर्ष के दौरान गांधी के बताए रास्ते पर चले। मंडेला को दक्षिण अफ्रीका का गांधी भी कहा जाता है । दोनों मे कई बातें समान थीं। दोनों ने बतौर बैरिस्टर अपने करियर की शुरूआत की और दोनों को ही रंग भेद के खिलाफ चलाए अपने अभियान के दौरान जोहानसबर्ग की कुख्यात फोर्ट जेल मे सजा काटनी पड़ी । दोनो कभी नहीं मिले,लेकिन उन्हें 20 वीं सदी के ऐसे योद्धा के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने औपनिवेशवाद के खिलाफ सशक्त तौर पर संघर्ष किया । महात्मा गांधी की तरह की ही अहिंसा और सत्याग्रह को अपना हथियार बनाने वाले मंडेला ने वर्ष 2000 मे टाइम पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार मे कहा था — “महात्मा गांधी औपनिवेशवाद को उखाड़ फेकने वाले क्रांतिकारी थे । दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन को मूर्त रूप देने मे मैंने उनसे प्रेरणा पाई “।

मंडेला ने कहा थे – ” महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका के भी पुत्र थे। भारत ने दक्षिण अफ्रीका को जो गांधी सौंपा था , वह एक बेरिस्टर था , जबकि दक्षिण अफ्रीका ने उस गांधी को महात्मा बनाकर भारत को लौटाया “।

राष्ट्रपति बनने के बाद मंडेला ने कई बार इस बात का खुलासा किया की जेल मे रहने के दौरान महात्मा गांधी की किताबें और उनसे जुड़ी गतिविधियों का अध्ययन करते थे।

मंडेला का कथन है की –“मैं न केवल गोरे लोगों के पशुत्व के, बल्कि अस्वेतों के पशुत्व के खिलाफ़ हूँ । मैं एक लोकतान्त्रिक और स्वतंत्र समाज का समर्थक हूँ , जिसमे सभी एक समान हैं और सभी को एक समान मौके मिले”

अपने इस कथन पर मंडेला राष्ट्रपति बनने के बाद भी कायम रहे और जिन स्वेतों ने उन्हे अमानवीय यातनाएं दी थीं , उनके साथ भी समतामूलक व्यवहार किया ।

उनके शांतिपूर्ण , अहिंसक संघर्ष और समदृष्टि , समभावमूलक गुणों के फलस्वरूप उन्हें व दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति डी क्लार्क को वर्ष 1993 का नोबेले शांति पुरस्कार संयुक्त रूप से प्रदान किया गया । डी क्लार्क ने भी वर्षों के संघर्ष को विराम देते हुए शांति की पहल आरंभ की थी । जिसकी परिणति 10 मई , 1994 को मंडेला के दक्षिण अफ्रीका के पहले लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप मे सामने आई ।

18 जुलाई मंडेला का जन्म दिवस है । उनके सम्मान मे वर्ष 2010 से हर साल इस दिन को ‘नेल्सन मंडेला दिवस ‘ के रूप मे मनाये जाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र द्वारा नवंबर , 2009 में पारित किया गया । इस प्रकार वर्ष 2010 मे जब 18 जुलाई को मंडेला ने अपना 92 वां जन्मदिन मनाया तब दुनिया भर मे यह दिन ‘ नेल्सन मंडेला अंतराष्ट्रीय दिवस ‘ के रूप मे मानया गया । इस दिन शांति और आजादी की दिशा मे दक्षिण अफ्रीकी नेता मंडेला के योगदान को याद किया जाता है ।

यूएनओ ने इस अवसर पर अपील की कि लोग दुनिया मे कम से कम 67 मिनट के लिए अपने समुदाय की भलाई केलिए कोई काम करें ।

सन 1960 मे दक्षिण अफ्रीका की नस्लभेद श्वेत सरकार ने अफ्रीकी नेशनल काँग्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था। उसके बाद सरकार ने अफ्रीकी नेशनल कॉंग्रेस के सदस्यों के अमेरिका मे प्रवेश पर रोक लगा दी थी, और इनको आतंकवादियों की सूची मे डाल दिया था सन 1990 में रंग भेद की समाप्ति के बाद अफ्रीकी नेशनल कॉंग्रेस के सत्ता मे आने के साथ ही वहाँ लोकतंत्र की बहाली हुई । इसके पूर्व नेल्सन मंडेला को वर्ष 1993 का नोबल शांति पुरस्कार मिल चुका था । लेकिन इसके बावजूद 14 वर्षों तक (2008 ) नेल्सन मंडेला का नाम आतंकवादियों की सूची मे पड़ा रहा

मई 2008 मे अमेरिकी काँग्रेस की प्रतिनिधि सभा ने एक विधेयक पास किया , उसके बाद ही मंडेला का नाम आतंवदियों की सूची से हटाया गया । अमेरिकी काँग्रेस की प्रतिनिधि सभा की विदेशी मामलों की समिति के प्रमुख और डेमक्रैटिक नेता हॉवर्ड बर्मन ने तब कहा था – “इस बहुप्रतीक्षित विधेयक के बाद एक लंबी और असहज कर देने वाली कहानी का अंत हो गया है । हमेशा रंगभेद पीड़ितों का समर्थन करने के बाद भी हम देश के आवर्जन संबंधी उन कानूनों मे अपेक्षित परिवर्तन नहीं कर पाए हैं, जिसकी वजह से दक्षिण अफ्रीका के कई रंग भेद विरोधी नेताओं के नाम आतंकवादियों की सूची मे शामिल हैं “।

नेल्सन मंडेला को 695 से अधिक पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं । इन पुरस्कार मे नोबल शांति पुरस्कार और अमेरिका काँग्रेस पदक शामिल है । उनके नाम पर कई भागों और इमारतों के नाम रखे गए हैं। उनके नाम से कई देशों मे पुरस्कार दिए जाते हैं.

स्रोत : – नेल्सन मंडेला (कैदी से राष्ट्रपति बनने की कहानी ) प्रभात प्रकाशन

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