TAREEKH KYA HAI तारीख क्या है ?

मेरा तबादला हो गया था । इस बार नौकरी मेरे घर से साठ किलो मीटर की दूरी पर थी यानि पहले से नजदीक। मेरा दोस्त हितेश, दो महिला टीचर और मैं रोज कार से आते जाते । दर्सल हम चारों एक ही शहर मे रहते थे ; किस्मत से हमारी पोस्टिंग एक ही गाँव के एक ही स्कूल में थी। सो हम नियाती के हाथों चुने हमसफ़र थे । यूं हमसफ़र चुनने का अधिकार मानव को होना चाहिए लेकिन अक्सर नियति यह फैसला लेती है और हमे इसे स्वीकार करना होता है जन्म स्थान की तरह ही । कई दफा विधि द्वारा लिए गए फैसले हमे सूट करते हैं ।

फिलहाल इस अनकम्फर्टबल कहानी को कम्फर्टबल करने के प्रयास मे मुझे अपनी महिला साथियों के नाम आपको बात देने चाहिए , तो पहली महिला साथी थीं चंचल बनर्जी और दूसरी साथी का नाम रेखा श्रीवास्तव था । वैसे तो थी दोनों ही तेज और जरूरत से ज्यादा चतुर ( दोस्त गौर कीजिए चतुर कहा है चालक नहीं) ; पर चंचल बैनर्जी तो अपने नाम से कहीं ज्यादा चंचल थीं । पूरे रास्ते पटट – पटर करती रहती थी । हितेश भी कमतर कहाँ था, वह इनकी पटट – पटर मे पूरा साथ देता था । इधर इन सब की संगत मे मुझे भी पता नहीं लग पता की रास्ता कब कट गया । यह अब तक समझ नहीं आया कि उनके जरिए कार मे फैलाए गए ध्वनि प्रदूषण के लिए मैं उन्हें कोसूँ या धन्यवाद दूँ, रास्ते भर के मनोरंजन के लिए ।

खैर, साथ आने जाने वाले मित्रों से इतर आपको स्कूल की ओर ले चलता हूँ । यह लगभग दस एकड़ मे फैल था । खूब हरियाली भरा वातावरण इस स्कूल की शान थी। नीम ,पीपल, शीशम बेल, गुलमोहर अमरूद , जामुन के अलावा पलाश, गुलाब गुड़हल और कई तरह के पेड़ जिन पर बेहद मोहक फूल खिले थे। उत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प “पलाश ” का पौधा स्कूल मे देख कर मन प्रफुल्लित हो गया ।

स्कूल मे हमारा पहला दिन था । हम प्रिन्सपल ऑफिस की ओर बढ़ रहे थे कि मेरी नजर ‘उस’ पर पड़ी । वह जो किसी तरफ न देख कर सिर्फ अपना काम कर रही थी पूरी लगन से । वह झाड़ू लगा रही थी । स्कूल ग्राउन्ड, जिस पर चारों तरफ पत्ते बिखरे थे ,साफ करने की जिम्मेदारी उसकी थी।

उम्र देखने मे यही कोई पैंतीस के आस पास । सर के बाल श्याम स्वेत । शरीर दुबला पतला गेंहुवा सा रंग। अस्सी के दसक के ब्लैक एण्ड व्हाइट टेक्सल टीवी पर चलती कमजोर झुकी आकृति सी वह । चेहरे पर नीरस भाव और हल्की सी मुस्कुराहट जैसे उसे दुनिया से कोई शिकायत ही नहीं। क्या इस चोट पहुँचने वाली दुनिया ने उस पर रहम कर रखा है। तभी उसने अपनी चुप्पी तोड़ी और पास से गुजरते टीचर से पूछा , “सर , आज तारीख क्या है ?” इस सवाल पर वह टीचर , जिनका नाम हमे बाद मे पता चला कि ‘ ऋषि’ है , कुछ ऐसे व्यंग्यात्मक मुस्कुराये जैसे उनके बैंक अकाउंट मे कितने पैसे हैं पूछ लिया हो। एक बार को उनके चेहरे के भाव देख कर लगा की वह यह राज नहीं खोलने वाले हैं कि आज क्या तारीख है ।

आज पच्चीस है , ऋषि सर ने जवाब देकर उस पर बहुत बाद अहसान कर दिया ।

हम प्रिन्सपल ऑफिस पहुंचे । उन्होंने हमे चार्ज ग्रहण करवाया । कुछ देर इधर – उधर की हल्की -पुलकी बातें हुई और हम सभी के लिए चाय मँगवाई गई । बातों ही बातों मे पता चला कि प्रिन्सपल मैडम चाय की शौकीन हैं । सुनकर अच्छा लगा , चूंकि यह बीमारी मुझे भी थी । मैडम को यह बात मालूम हुई तो बड़े जोश – खरोश के साथ बोली बहुत अच्छे वरुण सर , स्टाफ मे कोई तो है, जो मेरी तरह चाय का शौकीन है।

दो दिन बाद जब स्कूल मे प्रवेश कर रहे थे , तो मेरी नजर फिर उस पर पड़ी। वह वैसे ही शांतचित्त काम मे लगी थी । इधर – उधर फैले पीपल के पत्ते हाथों से उठा करटोकरी मे डाल रही थी । पेंड पर बैठी कोयल रसीली आवाज मे कूक रही थी और काम मे तल्लीन उस महिला के चेहरे पर सतत मुस्कुराहट और भोलापन था ।

आज तारीख क्याहै सर ? पीछे से आवाज आई ,मैँ यह सोंच कर चौंका की अभी दो दिन पहले ही ऋषि सर ने इसे तारीख बताई थी । आज अट्ठाईस है , चंचल मैडम मुझ से पहले बोल उठीं ।

तीस तारीख थी और हम स्कूल मे प्रवेश कर ही रहे थे । वह फिर पूछ बैठी ” आज तारीख क्या है सर “? इस बार न सिर्फ मुझे बल्कि हम सभी को आश्चर्य हुआ । आज तीस तारीख है मेरे दोस्त हितेश ने जवाब दिया । जवाब सुनकर उसके चेहरे पर अतिरिक्त मुस्कुराहट आ गई और रौनक तैरने लगी । अतिरिक्त मुस्कुराहट और चेहरे पर अचानक आई रौनक ने मेरी जिज्ञासा बढ़ा दी की आखिर मजरा क्या है ?

अरे !सर पहली तारीख को इसके अकाउंट मे भी सैलरी आती है इस लिए आज तीस तारीख सुनकर यह खुश हो गई की कल इसके अकाउंट मे सैलरी आ जाएगी । ऋषि सर ने जवाब दिया । उनकी बात को सही समझते हुए मैंने नजरअंदाज कर दिया ।

अगले कई दिन तक वह अपने काम मे उसी लगन से जुटी दिखाई दी । अब वह रोज -रोज तारीख भी नहीं पूछ रही थी। मै उस बात को भूल चुका था। मै आपको इस महिला का नाम भी बता दूँ , इसे सभी माया कह कर बुलाते थे ।

पच्चीस तारीख के आस -पास उसने फिर वही सवाल शुरू कर दिया । “आज तारीख क्या है सर ?” तीस तारीख वाले दिन उसके चेहरे पर मैंने फिर वही खुशी व रौनक देखी , जो पिछले महीने थी । यह सिलसिला कई महीनों तक यूं ही चलता रहा । स्कूल मे दूसरे सभी टीचर का भी यही कहना था की पहली तारीख को सैलरी आने की खुशी मे तीस तारीख को उसके चेहरे पर रंगत आ जाती है । पर मैंने एक बात नोटिस की की इकत्तीस तारीख को वह कभी यह सवाल न पूंछती । फरवरी का महीना चल रहा था और उसने एक दिन भी तारीख नहीं पूछी । बस यक दिन चंचल मैडम से पूछा कि “मैडम यह महिना कब खतम होगा ?”

चार दिन बाद कह कर चंचल मैडम चुप हो गई, मगर मैं उसके चेहरे पर आश्चर्य देख पा रहा था । वो हैरान थी कि फरवरी का महिना कब खतम होगा ?

फिर एक दिन प्रिन्सपल मैडम ने बताया ,” वरुण सर , यह माया है न,सालों पहले इसके पति ने इसे छोड़ दिया था , तबसे यह मायके मे रहती है और इस नौकरी से जीवन यापन करती है ?”

यह जान कर की यह एक परित्यक्तता है, उसके दर्द का कुछ – कुछ एहसास मुझे हो गया और इस बात से मेरी जिज्ञासा उस सवाल के प्रति बढ़ गई , जिसे फरवरी को छोड़ कर वह हर महीने मे पूछती है । क्यों पूछती है? – वह ये सवाल की आज तारीख क्या है ? और तीस तारीख को उसके चेहरे पर इतना सुकून क्यों होता है ? प्रिन्सपल मैडम पिछले कई सालों से इस स्कूल मे कार्यरत थीं, उनका मानना था की मजरा कुछ और नहीं सैलरी के इंतजार का है ।

मुझे यह जानकारी भी मिली की वह एक अनपढ़ महिला है और बेहद सीधी है। एक दिन घूमते – घूमते मै उसके घर के पास बने मंदिर मे जा पहुँचा । वहाँ मौजूद एक बुजुर्ग से मैंने उसके विषय मे बात की ।

उसके पति ने दूसरी औरत की खातिर उसे छोड़ दिया, पर वह आज तक उस बेदर्द को दिल से नहीं निकाल पाई। किसी से भी अपने पति की बुराई सुनकर वह कहती तो कुछ नहीं पर अकेले मे जा कर रोती बहुत है ,आँखों मे हजारों सालों की उदासी लिए बुजुर्ग कहे जा रहे थे ।

इतनी सीधी है की तारीख तो क्या दिन भी ठीक – ठीक उसे याद नहीं रहते । पर उसे एक निश्चित तारीख याद है वह है, तीस तारीख । आज भी भले से याद है, इसी तारीख को गाँव मे उसकी बारात आई थी । उसकी भोली भाली आँखों में जुगनू चमक रहे थे ;होंठों से मुस्कुराहट हट नहीं रही थी। किस्मत का क्रूर खेल देखिए, शादी के कुछ सलों बाद ही वह हमेशा के लिए एकाकी जीवन जीने को विवश हों गई, उस बुजुर्ग की आँखों मे आँसू थे ।

हर महीने की तीस तारीख को वह गाँव के बाहर बने विशाल मंदिर मे पूजा करती है, बताशे बँटती है। दरअसल , इसी मंदिर मे उसकी बारात आ कर रुकी थी । जिसने जिंदगी की सारी मिठस छीन ली; उसी की सलामती के नाम के बताशे बांटती है। बुजुर्ग का गला रुँध गया था ।

अब मेरे लिए वहाँ रुकना मुश्किल था; और दर्द सहने की ताकत मुझमे नहीं थी ।

वापसी मे, मैं सोच रहा था कैसे सह पाती है माया यह सब ? इतना दर्द मन में छुपकर भी न किसी से नाराज होती है, न कुछ कहती है। उसका इंद्रधनुष बिना रंग का है । बेरंग जिंदगी जीने की क्या खूब अदा है ।हर वक्त चेहरे पर एक हल्की मुस्कान, आवाज और अंदाज मे शालीनता , काम के प्रति इतनी लगन । एक अनपढ़ औरत कितनी हिम्मत के साथ परिस्थिति से सामंजस्य बैठा रही है । अनपढ़ केवल वह नहीं , जो किताब नहीं पढ़ पता , बल्कि वह भी है, जो परिस्थिति की नजाकत को नहीं समझ पता ।

4 thoughts on “TAREEKH KYA HAI तारीख क्या है ?”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top